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एक मुलाक़ात का इंतज़ार

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एक मुलाक़ात का इंतज़ार

सोशल मीडिया पर तो न जाने कितने लोग हैं, कितना कुछ कर रहे हैं, कितना कुछ कंटेंट बना के अपलोड कर रहे हैं. ज़ाहिर है ऐसे में कोई न कोई आपको पसंद आ ही सकता है. तो अपनी पहली पंक्ति को फिर दोहराता हूँ, कि सोशल मीडिया पर तो न जाने कितने लोग हैं. लेकिन फिर भी एक ख़ास चेहरा है वहां, जिसे जब पहली बार देखा था तब से अब तक एक ख्याल जो कभी दिल से गया नहीं वो था की यार काश! इनसे मुलाक़ात हो जाती। मुझे पता चला वो पहाड़ी है, हाँ हाँ सही सोचा कि वो पहाड़ों की रहने वाली है. लेकिन शायद वो शहर में रहती है. जैसी हमने अपने घर छोड़ा है न कमाने के लिए, नाम बनाने के लिए शायद उसे भी इसी मजबूरी ने घेरा होगा। मैं तो नवाबो के शहर से आता हूँ. लेकिन पहाड़ खूब घूमा हूँ इसलिए मेरे अंदर का पहाड़ी कभी कभी उसकी बात से रिलेट कर लेता है. कभी कभी इसलिए क्योंकि मैं कभी कभी ही पहाड़ गया हूँ मगर वो लड़की, वो तो पहाड़ से ही है न. भला कोई मुक़ाबला ? फिर भी उससे मिलना है एक बार बस... फिर कोशिश करूँगा कि मिलता रहूँ, और फिर कोशिश करूँगा की मिल ही जाऊं

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